Sunday 23 July 2017

कमाल है न? अभिव्यक्ति की आजादी सांसदों को बुरी लग रही है। : आशीष तिवारी

             
             चार दिन पहले यही माननीय सांसद चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे कि इस देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है।
सांसदों की गाड़ियों पर से लाल बत्ती हट गई है, लेकिन अपनी ज़ुबान पर लाल बत्ती वो लगाए रखना चाहते हैं। सदन की कार्यवाही से कथित तौर पर हटा दी जाने वाली टिप्पणियां जब लाइव टेलिविज़न पर देश पहले ही देख चुका हो, यूट्यूब और सोशल मीडिया पर लोग उस पर खुल कर बहस कर रहे हों, ऐसे में उस ‘एक्सपंज’ शब्द का क्या मतलब रह जाता है? और जब इस एक्सपंज का कोई अर्थ नहीं बचा तो एक्सपंज बात पर खबर छापने के लिए किसी के खिलाफ़ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाने का क्या मतलब है?
समाजवादी पार्टी के सांसद नरेश अग्रवाल ने राज्यसभा में जो बातें कहीं, वो सदन के रिकॉर्ड से तो हटा दी गईं लेकिन अपने बयान से हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने वाले अग्रवाल इस बात से आहत हैं कि अखबारों ने उस बारे में खबर कैसे छाप दी।
अग्रवाल चाहते हैं कि सांसद के विशेषाधिकार के तहत उनके हटा दिए गए बयान पर खबर छापने वाले अखबारों पर कार्रवाई हो।
देश में इमरजेंसी लगाने वाली कांग्रेस के सांसदों ने इसका समर्थन किया। प्रमोद तिवारी का सवाल था कि संसद में दिए किसी सांसद के बयान पर कोई एफआईआर कैसे करा सकता है? और आनंद शर्मा टीवी चैनलों पर होने वाली डिबेट्स में सांसदों की आए दिन हो रही फजीहत पर भड़के हुए थे। इतने कि सांसद के विशेषाधिकार को चुनौती देने वाले टीवी चैनलों को सज़ा दिलाने पर अड़ गए।कमाल है न? मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी देश के माननीय सांसदों को बुरी लग रही है। चार दिन पहले यही माननीय सांसद चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे कि इस देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है। लेकिन सांसदों के रवैये से भी शर्मनाक मीडिया के उस तबके की चुप्पी है जो कभी टीवी काला कर के और कभी स्टूडियो में जोकर बैठा के अभिव्यक्ति की आज़ादी की झंडाबरदारी करता रहा है।
आशीष तिवारी टीवी पत्रकार

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